दुनिया की सबसे बड़ी अदालत इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) ने बुधवार को जलवायु संकट को लेकर ऐसा फैसला दिया है, जिसने वैश्विक सरकारों की नींद उड़ा दी है।अदालत ने साफ किया कि हर व्यक्ति को स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण मिलना एक मौलिक मानवाधिकार है। ये फैसला एक छोटे से द्वीपीय देश वानुअतु की पहल पर आया, लेकिन असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा।गिरती हवा की गुणवत्ता, बढ़ती बीमारियां और लोगों का मौलिक हकICJ के अध्यक्ष युजी इवासावा ने इस राय को सुनाते हुए कहा कि ‘स्वच्छ, स्वस्थ और टिकाऊ पर्यावरण का मानव अधिकार भी उतना ही जरूरी है जितना बाकी अन्य मानवाधिकार।’उन्होंने साफ तौर पर ये भी जोड़ा कि बढ़ते प्रदूषण और जलवायु संकट से लोगों का जीवन सीधा प्रभावित हो रहा है और ये मौन संकट अब मानव अस्तित्व पर सवाल खड़ा कर रहा है।वानुअतु की लड़ाई, लेकिन सवाल पूरी दुनिया के लिएये मामला वानुअतु ने उठाया था, जो एक छोटा प्रशांत द्वीपीय देश है और समुद्र के बढ़ते स्तर से सबसे पहले प्रभावित होता है।इस पहल को 130 से ज्यादा देशों का समर्थन मिला। वानुअतु के अटॉर्नी जनरल अर्नोल्ड कील लॉघमैन ने अदालत से कहा था, ‘मेरे लोगों और कई अन्य समुदायों का अस्तित्व अब सीधा दांव पर है। हमें न्याय चाहिए और वो भी समय रहते।’एडवाइजरी राय, लेकिन असर कानूनी जमीनी हकीकत परये फैसला कानूनी रूप से बाधा बढ़ाने वाला नहीं है। और आसान भाषा में कहें तो इसका मतलब ये है कि किसी देश की सरकार पर इसका पालन अनिवार्य नहीं है। लेकिन कानूनी विशेषज्ञ मानते हैं कि इस एक सलाह से दुनियाभर में हजारों मुकदमे और नीतिगत बदलाव शुरू हो सकते हैं।क्योंकि ये 500 पन्नों की सलाह दो बड़े सवालों का जवाब देती है, एक, क्या जलवायु संकट से निपटने के लिए देशों पर अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत बाध्यता है? और दूसरा, अगर वो कुछ नहीं करते तो उनके क्या परिणाम होंगे?संदेश साफ है, अब देर नहीं चलेगीहेग की अदालत में जब फैसला आया तो माहौल गंभीर और ऐतिहासिक था। कार्यकर्ताओं ने हाथ में तख्तियां ले रखी थीं, जिन पर लिखा था, ‘अदालत ने बोल दिया है, अब देश चुप नहीं रह सकते।’भले ही ये सलाह हो, लेकिन ये इतिहास में उस मोड़ जैसा है, जहां कानून, पर्यावरण और मानव अधिकार पहली बार इतने सीधा जुड़ गए हैं।आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ। Comments (0) Post Comment