SCO समिट में राजनाथ सिंह बोले, ‘चीन सहमत, कैलाश यात्रा हुई रिवाइव!’

किंगदाओ में SCO रक्षा मंत्रियों की बैठक में एक बड़ी समझ बनी है, जो ये है किकैलाश मानसरोवर यात्रा फिर से छेड़ी जाएगी।

दरअसल ये बात राजनाथ सिंह खुद सामने ले आए। उन्होंने X पर साफ कहा कि 6 साल के बाद पर्यटन का ये पवित्र सिलसिला फिर से शुरू किया जाना तय हुआ है।


किंगदाओ में रक्षा मंत्रियों की मुलाकात और सकारात्मक संकेत

राजनाथ सिंह ने बताया कि चाइनीज रक्षा मंत्री एडमिरल डॉन जून के साथ उनकी बातचीत "रचनात्मक और दूरदर्शी" थी और इसी चर्चा का नतीजा है यह निर्णय।

वहीं आप सोच रहे होंगे कि ये बात इतनी अहम क्यों, तो गौर करने वाली बात यह है कि भारत‑चीन संबंधों में धार्मिक पर्यटन हमेशा सेंसेटिव रहा है और उसमें व्यवधान पड़ना, आम भक्तों के लिए चिंता की बात थी। लेकिन अब ये रिश्ता SCO मंच पर फिर से नॉयडा जैसा मजबूत दिख रहा है।


कैलाश मानसरोवर के महत्व को क्यों समझा गया भरोसे का पुल?

अब सवाल यह उठेगा कि इतने साल बाद ये फैसला क्यों हुआ? दरअसल, COVID‑19, बॉर्डर टेंशन और महामारी के बाद से पूजा‑यात्रा पर रोक थी।

अचानक भूटान में आशंका बनी और रेल-कंपलायंस में उलटफेर ने रद्दी रास्ता दिखाया था।

लेकिन इस बैठक में राजनाथ ने साफ कहा कि दोनों सेनाओं की जानकारी मजबूत हुई, भरोसे की चैन बनानी जरूरी थी और SCO मंच पर यही भरोसा फिर से कायम हुआ।


SCO में रूस‑बेलारूस के रक्षा मंत्रियों से मुलाकात भी हुई

सिर्फ चीन से ही नहीं, बल्कि राजनाथ सिंह ने SCO के मौके पर रूस और बेलारूस के रक्षा मंत्रियों से भी महत्वपूर्ण बैठक की।

उनसे उन्होंने साझेदारी से लेकर क्षेत्रीय सुरक्षा, मिलिट्री कोऑपरेशन और लॉन्ग टर्म रणनीति पर वार्तालाप की, जो ये बताता है कि भारत अपनी रक्षा नीति को कई दिशाओं और स्तर पर मजबूती से आगे बढ़ा रहा है।


इस कदम का क्या महत्व?

गौर करने वाली बात यह है कि धार्मिक पर्यटन न सिर्फ पर्यटन राजस्व बढ़ाता है बल्कि भरोसे का पुल होता है।

भारत‑चीन रिश्तों में व्यवधान आए बिना ये विशेष यात्रा शुरू होना, दोनों देशों के बीच रिश्तों में खुशगवार संकेत से कम नहीं।


कैसे आगे बढ़ेगी यात्रा योजना?

राजनाथ सिंह ने कहा है कि अगले कुछ महीनों में दोनों देशों की संबंधित एजेंसियों के बीच प्रोटोकॉल, सिक्योरिटी, कोविड गाइडलाइंस, परमिट, सबकुछ तय किया जाएगा।

और आप मान सकते हैं कि ये यात्रा सिर्फ तीर्थाटन नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति में विश्वास की वापसी का संकेत है।

लेकिन सावधान,  ये लिखना तो अभी तय नहीं है कि त्योहारों में या अगले छह महीने में होगी ये यात्रा। समय ही बताएगा कि इसे कब धरातल पर उतारा जाएगा।


ये समझौता क्यों अहम है?

तो कुल मिलाकर, SCO समिट में यह फैसला एक symbolic gesture से कहीं आगे निकला है।

ये एक संकेत है कि भारत‑चीन रिश्ते अब सिर्फ रणनीति‑राजनीति से आगे बढ़कर सामाजिक‑धार्मिक स्थिरता पर भी आधारित होंगे, और SCO इस मददगार मंत्र साबित हो सकता है।

और आपके लिए सबसे बड़ा सवाल: क्या इस योजना से न सिर्फ तीर्थाटन बल्कि रिश्तों में भी एक तरह का विश्वास लौटा है?

कुछ महीनों बाद अगर भक्त कैलाश पहुँच गए, तो साफ हो जाएगा कि इतनी बड़ी बात किसी मानवीय पहल से थोड़ी सी नहीं हो सकती।

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