राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने हाल ही में राज्यसभा के लिए चार नए सदस्यों को मनोनीत किया है। इनमें शामिल हैं वकील उज्जवल निकम, पूर्व विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला, समाजसेवी सी. सदानंदन मास्टर और शिक्षाविद डॉ. मीनाक्षी जैन। इनका कार्यकाल छह साल का होगा।इस मौके पर यह जानना जरूरी है कि आखिर राज्यसभा और लोकसभा के सांसदों में क्या फर्क होता है, इनके अधिकार क्या होते हैं और कौन ज्यादा ताकतवर माना जाता है?भारत की संसद दो सदनों से मिलकर बनी है - राज्यसभा और लोकसभा। ये दोनों मिलकर कानून बनाते हैं, नीतियां तय करते हैं और सरकार की जवाबदेही तय करते हैं। मगर इन दोनों सदनों की भूमिका, गठन और अधिकारों में कई अहम अंतर हैं।कौन किस तरह चुना जाता है?लोकसभा को आमतौर पर “जनता का सदन” कहा जाता है। इसकी सबसे खास बात यही है कि इसके सदस्य सीधे जनता द्वारा वोट डालकर चुने जाते हैं।दूसरी तरफ, राज्यसभा को “राज्यों का सदन” कहा जाता है, क्योंकि इसके सदस्य राज्यों की विधानसभाओं के सदस्य चुनते हैं। राज्यसभा का मकसद राज्यों के हितों का प्रतिनिधित्व करना होता है।इसके अलावा, राष्ट्रपति को यह अधिकार भी होता है कि वो कला, विज्ञान, शिक्षा या समाज सेवा जैसे क्षेत्रों के विशेषज्ञों को राज्यसभा के लिए नामित कर सकें।सदस्यों की संख्या और कार्यकाल में क्या फर्क है?लोकसभा संसद का निचला सदन है, वहीं राज्यसभा ऊपरी सदन होता है। लोकसभा में अभी 543 निर्वाचित सदस्य हैं, जबकि राज्यसभा में कुल 245 सदस्य होते हैं।इनमें से 12 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किए जाते हैं, बाकी को राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों की विधानसभाएं चुनती हैं।लोकसभा का कार्यकाल पांच साल का होता है। मगर जब ज़रूरत हो, तो आपातकाल जैसे हालात में इसे राष्ट्रपति द्वारा बढ़ाया भी जा सकता है।वहीं राज्यसभा कभी भंग नहीं होती, इसे एक स्थायी सदन माना जाता है। हर दो साल में इसके एक-तिहाई सदस्य रिटायर होते हैं और उनकी जगह नए सदस्य आते हैं।लोकसभा का स्पीकर बनता है, राज्यसभा का होता है नियुक्तलोकसभा के स्पीकर का चुनाव संसद के सदस्यों द्वारा किया जाता है, जबकि राज्यसभा का सभापति देश का उपराष्ट्रपति होता है।उपराष्ट्रपति ही राज्यसभा की कार्यवाही का संचालन करते हैं। उनके साथ एक उप सभापति भी होता है, जो राज्यसभा के ही सदस्यों में से चुना जाता है।किसके पास ज्यादा अधिकार होते हैं?जहां तक अधिकारों की बात है, तो लोकसभा के पास कुछ खास पावर्स होती हैं। जैसे कि सरकार बनाने या गिराने का अधिकार सिर्फ लोकसभा के पास है। प्रधानमंत्री और कैबिनेट के मंत्री लोकसभा के प्रति जवाबदेह होते हैं।कोई सरकार तभी गिर सकती है, जब लोकसभा में उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास हो जाए।बजट और मनी बिल भी सिर्फ लोकसभा में ही पेश हो सकते हैं, राज्यसभा केवल इन पर चर्चा कर सकती है लेकिन इन्हें पास करने या रोकने की अंतिम ताकत लोकसभा के पास ही होती है।हालांकि राज्यसभा भी कुछ मामलों में अहम भूमिका निभाती है। जैसे कि अगर किसी राज्य से जुड़ा विषय हो जिस पर केंद्र सरकार को कानून बनाना है, तो राज्यसभा दो-तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पास करके संसद को वह अधिकार दे सकती है।इसके अलावा, राज्यसभा में पेश सामान्य विधेयकों पर लोकसभा जैसी ही भूमिका होती है, और अगर दोनों सदनों में किसी बिल को लेकर मतभेद हो जाए तो संयुक्त बैठक होती है, जहां लोकसभा की संख्या अधिक होने की वजह से उसका मत निर्णायक होता है।MP को हर साल कितना पैसा मिलता है विकास के लिए?हर सांसद को विकास कार्यों के लिए भी एक तय राशि मिलती है, जिसे ‘सांसद स्थानीय क्षेत्र विकास योजना’ (MPLADS) कहा जाता है।लोकसभा और राज्यसभा दोनों के सदस्य हर साल पांच करोड़ रुपये तक की राशि अपने क्षेत्र के विकास के लिए खर्च कर सकते हैं।लोकसभा सांसद यह पैसा सिर्फ अपने संसदीय क्षेत्र में खर्च कर सकते हैं, जबकि राज्यसभा सांसद अपने राज्य के किसी भी जिले में यह फंड इस्तेमाल कर सकते हैं।वहीं, राष्ट्रपति द्वारा नामित राज्यसभा सांसद देश के किसी भी हिस्से में यह रकम इस्तेमाल कर सकते हैं।राज्यसभा और लोकसभा, दोनों ही भारतीय लोकतंत्र की मजबूती के दो मुख्य स्तंभ हैं। एक तरफ जहां लोकसभा सीधा जनादेश लेकर आती है, वहीं राज्यसभा राज्यों की आवाज़ बनती है।दोनों का संतुलन और पारदर्शिता, भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली को मजबूती देने में अहम भूमिका निभाता है।आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ। Comments (0) Post Comment