राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में आरएसएस की वार्षिक विजयादशमी रैली को संबोधित करते हुए कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बात की। उन्होंने पड़ोसी देशों में हिंसक विद्रोह, पहलगाम हमला, और अंतरराष्ट्रीय मामलों पर भारत के रुख पर विचार साझा किए। भागवत ने जोर देकर कहा कि असंतोष और विरोध प्रदर्शन हिंसक तरीके से व्यक्त करना किसी के भी हित में नहीं होता। उथल-पुथल से कोई लाभ नहीं भागवत ने कहा कि जनता में असंतोष को हिंसक तरीके से व्यक्त करना देश या समाज के लिए फायदेमंद नहीं होता। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि हमारे पड़ोसी देशों में हाल में हुई हिंसक घटनाएं किसी सकारात्मक परिणाम तक नहीं पहुंच पाईं। उनका कहना था कि ऐसे विद्रोह अक्सर विदेशी शक्तियों को हस्तक्षेप का अवसर देते हैं। उन्होंने श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में हुए हिंसक आंदोलनों का उल्लेख किया और कहा कि ये घटनाएँ भारत के लिए चिंता का विषय हैं। भागवत ने स्पष्ट किया कि उथल-पुथल किसी क्रांति का मार्ग नहीं खोलती। उनका मानना है कि परिवर्तन लोकतांत्रिक तरीकों से ही संभव है, और हिंसक या लापरवाह प्रयासों से स्थिति जस की तस बनी रहती है। बदलाव लोकतांत्रिक तरीके से आता है आरएसएस प्रमुख ने कहा कि जब सरकार जनता से दूर रहती है और उनकी समस्याओं को समझने में असफल होती है, तब लोग नाराज़ हो जाते हैं। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि अपनी नाखुशी व्यक्त करने के लिए हिंसा या उथल-पुथल का सहारा लेना सही नहीं है। उन्होंने इतिहास के उदाहरण देते हुए बताया कि कई क्रांतियाँ अपने लक्ष्यों को पूरी तरह हासिल नहीं कर पाईं। जैसे कि फ्रांस में राजा के खिलाफ क्रांति हुई, लेकिन अंततः नेपोलियन सम्राट बन गए। कई समाजवादी आंदोलन भी सफल नहीं हो पाए और समय के साथ वे पूंजीवादी व्यवस्थाओं में बदल गए। भागवत ने भारत की विविधता को देश की सबसे बड़ी ताकत बताया और कहा कि हमें इसे स्वीकार करना चाहिए। पहलगाम हमले पर भागवत का बयान मोहन भागवत ने पहलगाम आतंकवादी हमले का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इस हमले में आतंकवादियों ने धर्म पूछकर 26 भारतीयों की हत्या की। इसके बाद भारत ने सशस्त्र बलों और सरकार की ओर से कड़ा जवाब दिया। उन्होंने कहा कि इस घटना से देश में पीड़ा और आक्रोश फैल गया, लेकिन नेतृत्व का दृढ़ संकल्प और समाज की एकता ने चरमपंथियों को नियंत्रित किया। भागवत ने यह भी बताया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय के रुख ने यह स्पष्ट किया कि कौन भारत का मित्र है और किस हद तक। उन्होंने कहा कि हमारी सुरक्षा की दृष्टि से सतर्क और मजबूत रहना जरूरी है। भागवत ने अपने भाषण में यह संदेश दिया कि हिंसा और उथल-पुथल से कोई स्थायी बदलाव नहीं आता। केवल लोकतांत्रिक और शांतिपूर्ण प्रयास ही समाज और देश के लिए लाभकारी होते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि भारत को अपनी विविधता और संस्कृति पर गर्व होना चाहिए और पड़ोसी देशों की हिंसा से सीख लेते हुए देश की सुरक्षा और एकता पर ध्यान देना चाहिए। Comments (0) Post Comment