भारत से रिश्ते सुधारने को यूनुस ने भेजे हरीभंगा आम, पीएम मोदी के लिए खास तोहफा!

बांग्लादेश के कार्यवाहक प्रधानमंत्री और मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने आखिरकार कूटनीति की वो राह चुनी है, जो दशकों से भारत-बांग्लादेश रिश्तों में एक खास भूमिका निभाती रही है, आमों वाली राह!


भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में भले हाल ही में कुछ खटास आ गई हो, लेकिन इस बार यूनुस ने दोस्ती में फिर से मिठास घोलने की कोशिश की है, वो भी खास किस्म के बांग्लादेशी आम ‘हरीभंगा’ के ज़रिए।


माना जा रहा है कि भारत को बाईपास करने की बांग्लादेश की नई रणनीति यूनुस सरकार को वैसी सफलता नहीं दिला सकी, जैसी उम्मीद थी।


ऐसे में अब वही पुरानी राह चुनी गई है, जहां मिठास से बात बनती है और डिप्लोमेसी का चेहरा थोड़ा सॉफ्ट हो जाता है।


यही वजह है कि बांग्लादेश सरकार ने न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को, बल्कि भारत के कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को भी हरीभंगा आम भेजे हैं।


1000 किलो आम पहुंचे भारत


सरकारी सूत्रों के अनुसार, बांग्लादेश ने इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए 1000 किलो हरिभंगा आमों की एक खास खेप तैयार कराई है। यह खेप सोमवार को नई दिल्ली पहुंचेगी।


यह वही परंपरा है, जो पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना के कार्यकाल में हर साल निभाई जाती थी। उन्होंने इसे ‘मैंगो डिप्लोमेसी’ यानी ‘आम कूटनीति’ का नाम दिया था।


मोहम्मद यूनुस द्वारा उसी परंपरा को आगे बढ़ाना इस बात का संकेत है कि वे भारत के साथ रिश्तों को फिर से बैलेन्स्ड और सौहार्दपूर्ण बनाना चाहते हैं।


मोदी के अलावा राज्यों को भी भेजे आम


यूनुस सरकार ने यह मिठास सिर्फ दिल्ली तक सीमित नहीं रखी है। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा को भी हरीभंगा आमों की खेप भेजी गई है।


ऐसा इसलिए क्योंकि बांग्लादेश की सीमा इन राज्यों से लगती है और इन राज्यों का राजनीतिक और सांस्कृतिक जुड़ाव भी बांग्लादेश से पुराना है।


बांग्लादेश में आम भेजने की यह परंपरा केवल फल देने तक सीमित नहीं रही, यह एक ऐसा कदम है जो हर बार दोनों देशों के बीच संवाद का एक नया द्वार खोलता है।


क्यों खास हैं हरीभंगा आम?


हरीभंगा आम बांग्लादेश की शान माने जाते हैं। रंगपुर जिले में इनकी सबसे ज्यादा खेती होती है। इस आम की सबसे बड़ी खासियत है इसका आकार और स्वाद।


आमतौर पर ये 500 ग्राम से लेकर 700 ग्राम तक के होते हैं और गूदेदार होने के कारण बहुत रसदार माने जाते हैं।


जून के तीसरे हफ्ते से लेकर जुलाई के अंत तक ये बाजार में मिलते हैं और बांग्लादेश की पहचान बन चुके हैं।


रिश्तों में आई थी खटास, अब मिठास की उम्मीद


बांग्लादेश में सरकार बदलने के बाद भारत-बांग्लादेश रिश्तों में थोड़ी दूरी आ गई थी। यूनुस सरकार की नीति शुरू में भारत को बाईपास करके चीन और दूसरी शक्तियों के साथ जुड़ने की ओर इशारा कर रही थी।


लेकिन शायद अब यूनुस को ये बात समझ में आने लगी है कि भारत के साथ लंबे समय से जो सांस्कृतिक, सामाजिक और व्यापारिक रिश्ते हैं, उन्हें पूरी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।


इसी को ध्यान में रखते हुए अब हरीभंगा आमों की डिप्लोमेसी फिर से शुरू हुई है, जो ये जताती है कि बांग्लादेश अभी भी भारत के साथ संबंधों को महत्व देता है।


‘आम कूटनीति’ का इतिहास


आम के जरिए कूटनीति करने का चलन नया नहीं है। बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इसे एक प्रथा के तौर पर अपनाया था। हर साल वे प्रधानमंत्री मोदी सहित भारत के अन्य नेताओं को आम भेजा करती थीं।


इन आमों के साथ एक निजी संदेश भी होता था, जो यह दिखाता था कि बांग्लादेश भारत को एक अहम पड़ोसी मानता है।


यही तरीका अब यूनुस सरकार भी अपना रही है, जिससे ये संकेत मिल रहे हैं कि दोनों देशों के रिश्ते फिर से पुराने स्तर पर वापस आ सकते हैं।


हरिभंगा आम सिर्फ एक फल नहीं है, बल्कि भारत और बांग्लादेश के रिश्तों में मीठेपन का प्रतीक बन चुका है।


बांग्लादेश सरकार का यह कदम ना सिर्फ डिप्लोमैटिक लेवल पर एक पॉजिटिव मूव माना जा रहा है, बल्कि यह यह भी दिखाता है कि कभी-कभी सबसे मुश्किल कूटनीतिक हालात को भी एक आम से सुधारा जा सकता है।


अब देखना ये है कि भारत इस मिठास का जवाब कैसे देता है, राजनीति से या फिर आम के बदले आम?


आप क्या सोचते हैं इस खबर को लेकर, अपनी राय हमें नीचे कमेंट्स में जरूर बताएँ।

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