ज़मीन से जुड़ी सोच और सच्ची खबरें
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नोएडा में सामने आए एक सनसनीखेज बैंक ठगी मामले ने पूरे बैंकिंग सिस्टम को हिला कर रख दिया है। पुलिस ने एक निजी बैंक के असिस्टेंट मैनेजर को गिरफ्तार किया है, जिस पर 84 लाख की धोखाधड़ी का आरोप है। महिला को डिजिटल अरेस्ट के नाम पर डराकर उससे इतनी बड़ी रकम ठग ली गई थी। यह बैंक डाटा लीक केस न सिर्फ साइबर सुरक्षा पर सवाल खड़े करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि किस तरह से बैंक के अंदर बैठे लोग भी ठगों से मिले हो सकते हैं।
पुलिस के अनुसार, आरोपी का नाम सोनू पाल है, जो उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले का रहने वाला है। सोनू नोएडा की एक प्राइवेट बैंक में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत था। जांच में सामने आया कि सोनू ने साइबर ठगों को फर्जी बैंक खाते उपलब्ध कराए, जिनका इस्तेमाल इस बैंक ठगी मामले में किया गया। इसी खाते में महिला द्वारा भेजे गए 84 लाख रुपये अलग-अलग ट्रांजेक्शनों में ट्रांसफर हुए।
पुलिस ने बताया कि यह 84 लाख की धोखाधड़ी जून 2024 में हुई थी, जब पीड़िता को एक कॉल आया। कॉल करने वालों ने खुद को पुलिस अधिकारी और एनसीबी एजेंट बताया और कहा कि उसके नाम से एक पार्सल पकड़ा गया है जिसमें ड्रग्स हैं। डर के मारे महिला ने बताए गए सभी बैंक खातों में रकम ट्रांसफर कर दी। बाद में उसे पता चला कि वह डिजिटल अरेस्ट के नाम पर धोखा खा गई है।
इस बैंक डाटा लीक केस में सोनू का किरदार बेहद अहम था। उसने राम सिंह नामक एक व्यक्ति के नाम पर खाता खुलवाया और उसकी बैंकिंग किट खुद के पास रख ली। इसके बाद वह खाते को साइबर जालसाजों को इस्तेमाल करने के लिए देता था और इसके बदले मोटी रकम कमीशन के रूप में वसूलता था। पुलिस ने पहले ही इस गिरोह के तीन अन्य सदस्यों—राम सिंह, नरेंद्र और अक्षय को गिरफ्तार कर लिया था।
सोनू पहले भी कई बार इस तरह के बैंक ठगी मामलों में संलिप्त रहा है। पुलिस की जांच में यह भी सामने आया कि वह सरकारी योजनाओं और लोन के नाम पर लोगों से बैंक खाते खुलवाता था, लेकिन बैंक किट खुद के पास रखता था। फिर यह जानकारी ठगों को भेज देता था। यह सब सुनियोजित तरीके से एक साल से ज्यादा समय तक चलता रहा।
Newsest की यह रिपोर्ट इस बात को उजागर करती है कि अब बैंक ठगी मामले केवल तकनीकी नहीं रह गए हैं, बल्कि बैंक के अंदर बैठे कुछ भ्रष्ट कर्मचारी भी इसमें सीधे तौर पर शामिल हैं। असिस्टेंट मैनेजर की गिरफ्तारी यह साबित करती है कि अब समय आ गया है कि बैंक अपने डाटा सिस्टम और कर्मचारियों की गतिविधियों पर और भी सख्त निगरानी रखें।
इस 84 लाख की धोखाधड़ी से यह भी स्पष्ट होता है कि बैंक डाटा लीक केस जैसे मामलों पर रोक लगाने के लिए साइबर सुरक्षा के साथ-साथ बैंक प्रशासनिक ढांचे को भी मजबूत करने की जरूरत है।
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